क्या आपको पता है शिवलिंग पर बनी ये 3 सफेद रेखाओं का अर्थ क्या है, जाने इसका गहरा रहस्य

पूजा के बाद भोलेनाथ को चढ़ाए फल और फूल। ये न सिर्फ खास हैं बल्कि इनका रहस्यमयी होना लाजिमी भी है. क्योंकि शिव की महिमा को समझना किसी के बस की बात नहीं है। हम इस लेख में उनसे जुड़े एक ऐसे ही रहस्य के बारे में बात कर रहे हैं।
क्या आपने कभी सोचा है कि माथे पर तिलक हमेशा नीचे से ऊपर की ओर लंबवत क्यों लगाया जाता है, लेकिन त्रिपुंड हमेशा बायीं से दाहिनी आंख यानी क्षैतिज रूप से क्यों लगाया जाता है? साथ ही इसे इस्तेमाल करने के लिए सिर्फ भस्म या चंदन का ही इस्तेमाल क्यों किया जाता है। तो आइए आपको बताते हैं त्रिपुंड का ये राज।
हम सभी जानते हैं कि भारत की प्राचीन पूजा पद्धति में दो परंपराएं हैं। पहला वैष्णव और दूसरा शैव। त्रिपुंड भी इन्हीं शैव परंपराओं में से एक का वाहक है। त्रिपुण्डा यानि भोलेनाथ के मस्तक पर या शिवलिंग पर रखी क्षैतिज रेखाओं को शैव मत का तिलक कहा जाता है। सफेद चंदन या राख का एक त्रिपुंड भगवान के माथे पर लगाया जाता है, जबकि शैव परंपरा के तपस्वी अपने माथे पर राख या पीले चंदन की विशेष रूप से तैयार तिपाई पहनते हैं।
जानिए क्या है त्रिपुंड का धार्मिक महत्व: धार्मिक अवसरों और पूजा में त्रिपुंड का विशेष महत्व माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इसे लगाने से जातक के मन में कोई भी बुरा विचार नहीं आता है। साथ ही इसकी नेगेटिविटी भी दूर हो जाती है।
मन में सात्विकता का प्रवाह होता है। आपको बता दें कि त्रिपुंड सिर पर ही लगाया जाता है। लेकिन इसे शरीर के 32 अंगों पर भी लागू किया जा सकता है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि सभी अंगों में अलग-अलग देवी-देवताओं का वास होता है।
जानिए क्या है त्रिपुंड की तीन पंक्तियों का महत्व: त्रिपुंड की पहली पंक्ति का अर्थ है आकार, गहपताय, रजोगुण, पृथ्वी, धर्म, क्रियाशक्ति, ऋग्वेद, प्रातकाल हवन और महादेव। दूसरी ओर दूसरी पंक्ति का अर्थ है ओंकार, दक्षिणाग्नि, सत्त्वगुण, आकाश, अंताकरण, संकल्पशक्ति, मध्याहन हवन और महेश्वर।
वहीं तीसरी रेखा का अर्थ मकर, अहवानी अग्नि, तमोगुण, स्वर्गलोक, परमात्मा, ज्ञानशक्ति, सामवेद, तीसरा हवन और शिव माना गया है। ध्यान रहे कि त्रिपुंड को बीच की तीन अंगुलियों में लेकर बायीं आंख से दाहिनी आंख पर भक्ति मंत्र के साथ लगाना चाहिए।