इस मंदिर में दर्शन करने से मिलता है चार धाम यात्रा का फल, भगवान के दर्शन होते हैं 3 रूपों में!!

छत्तीसगढ़ में कई तीर्थ हैं। उनमें से एक है राजिम। तीन नदियों – महानदी, परी और सोंदूर के संगम के कारण इसे छत्तीसगढ़ का प्रयाग भी कहा जाता है। माघी पूर्णिमा के दिन यहां एक विशाल मेला लगता है, जो महाशिवरात्रि 2022 तक चलता है। इस बार राजिम कुंभ 2022 16 फरवरी से शुरू हो गया है, जो 1 मार्च तक चलेगा।
इस मेले में देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु आते हैं और पवित्र नदियों के संगम में स्नान करते हैं। इसे माघी पुन्नी मेला 2022 के नाम से जाना जाता है। राजिम में कई ऐतिहासिक मंदिर हैं, जिनका धार्मिक महत्व भी है। ऐसा ही एक मंदिर है राजीव लोचन मंदिर। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर के दर्शन करने से चार धाम के दर्शन का फल मिलता है। इस मंदिर से कई मान्यताएं और परंपराएं जुड़ी हुई हैं। जानिए इस मंदिर से जुड़ी खास बातें
अलग-अलग रूपों में प्रकट होते हैं भगवान: राजिम के त्रिवेणी संगम स्थित राजीव लोचन मंदिर के चारों कोनों में भगवान विष्णु के चार रूप प्रकट होते हैं। भगवान राजीव लोचन यहां बचपन में, दोपहर में युवावस्था में और रात में बुढ़ापे में प्रकट होते हैं। 8वीं-9वीं सदी के इस प्राचीन मंदिर में बारह स्तंभ हैं। इन स्तंभों पर भगवान राम और नरसिंह, भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार, दुर्गा, गंगा, यमुना और भगवान विष्णु के चित्र हैं। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर में भगवान विष्णु विश्राम करने आते हैं। ऐसा माना जाता है कि जगन्नाथपुरी की यात्रा राजिम की यात्रा तक पूरी नहीं होती है।
ये है मंदिर का रूप: राजीव लोचन मंदिर एक चतुर्भुज में बना है। यह काले पत्थर से बनी भगवान विष्णु की चार भुजाओं वाली मूर्ति है, जिसके हाथ में शंख, चक्र, गदा और पदम है। ऐसा माना जाता है कि भगवान रत्नाकर यहां गज और ग्रह की लड़ाई के बाद प्रकट हुए थे, जिसके बाद उन्होंने इस मंदिर का निर्माण किया था। इसलिए इस क्षेत्र को हरिहर क्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है। हरि यानी राजीव लोचन जी और उनके पास ही एक और मंदिर है जिसका नाम हर यानी राजराजेश्वर है। वर्तमान मंदिर 7वीं शताब्दी का है। प्राप्त अभिलेख के अनुसार इसका निर्माण नलवंशी राजा विलास्टुंग ने करवाया था।
स्वयं प्रकट होता है भगवान: इस मंदिर के साथ मान्यता है कि यहां भगवान साकार रूप में प्रकट होते हैं। लोगों ने अपने अस्तित्व का अनुभव किया है। कहा जाता है कि कई बार ऐसा लगता है कि खुद भगवान ने बलि स्वीकार कर ली है। हाथ के निशान अक्सर दाल और चावल पर पाए जाते हैं। इसके साथ ही तेल, तकिए आदि अक्सर भगवान के बिस्तर पर बिखरे पाए जाते हैं।