क्या होता है रुद्राक्ष? जानिए कैसे हुई थी इसकी उत्पत्ति और धारण करने के क्या-क्या हैं फायदे??

क्या होता है रुद्राक्ष? जानिए कैसे हुई थी इसकी उत्पत्ति और धारण करने के क्या-क्या हैं फायदे??

रुद्राक्ष हिंदू धर्म में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इसका संबंध भगवान शिव से है। हिंदू धर्म के अनुयायी भी इसकी पूजा करते हैं। जानकारों के अनुसार रुद्राक्ष को धारण करने से व्यक्ति की सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं। यह बहुत फायदेमंद माना जाता है, लेकिन इसे पहनने से पहले आपको इसके बारे में पता होना चाहिए। रुद्राक्ष कई प्रकार के होते हैं, जिनमें से प्रत्येक का अलग-अलग प्रभाव होता है। आइए जानते हैं रुद्राक्ष के बारे में सबकुछ।

रुद्राक्ष की उत्पत्ति: पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव ने कई वर्षों तक कठोर तपस्या की थी। उसी समय जब उसने अपनी आँखें खोलीं तो किसी कारण से उसकी आँखों से आँसू निकल आए और इन आँसुओं ने रुद्राक्ष के पेड़ को जन्म दिया। इसलिए यह पवित्र और पूजनीय है।

रुद्राक्ष धारण करने के नियम: रुद्राक्ष को कलाई, गर्दन और हृदय पर धारण करना चाहिए। इसे गले में पहनना सबसे अच्छा माना जाता है। कलाई पर 12 दाने, गले पर 36 दाने और हृदय पर 108 दाने। रुद्राक्ष का एक दाना धारण करने से पहले इस बात का ध्यान रखें कि वह दिल तक और लाल धागे में हो।

रुद्राक्ष धारण करने से पहले इसे शिव को अर्पित करना चाहिए। रुद्राक्ष धारण करने वाले को सात्विक होने के साथ-साथ अपना आचरण भी शुद्ध रखना चाहिए। रुद्राक्ष धारण करने का सर्वोत्तम समय श्रवण और शिवरात्रि है। इसके अलावा सोमवार को भी माना जा सकता है।

विभिन्न रुद्राक्ष और उसके फल:

एक मुखी रुद्राक्ष: इसे भगवान शिव का रूप माना जाता है। सिंह राशि वालों के लिए बहुत शुभ है। जिन लोगों की कुंडली में सूर्य से संबंधित समस्या है उन्हें यह मान लेना चाहिए।

दोमुखी रुद्राक्ष: इसे अर्धनारीश्वर का एक रूप माना जाता है। कर्क राशि के जातकों को यह रुद्राक्ष सर्वोत्तम फल देता है। इसे पहनने से आत्मविश्वास और मन की शांति मिलती है।

तीन मुखी रुद्राक्ष: यह रुद्राक्ष अग्नि और तेज का एक रूप है। यह मेष और वृश्चिक राशि के लोगों के लिए सबसे अच्छा माना जाता है। यह रुद्राक्ष मंगल दोष की रोकथाम के लिए पहना जाता है।

चौमुखी रुद्राक्ष: इसे ब्रह्म का एक रूप माना जाता है। मिथुन और कन्या राशि के लिए यह सबसे अच्छा रुद्राक्ष है। चर्म रोग, मानसिक क्षमता, एकाग्रता और रचनात्मकता में इसका विशेष लाभ होगा।

पंचमुखी रुद्राक्ष: इसे कालाग्नि भी कहते हैं। इसे धारण करने से मंत्र शक्ति और ज्ञान की प्राप्ति होती है। यह बृहस्पति से संबंधित है।

छह मुखी रुद्राक्ष: इसे भगवान कार्तिकेय का एक रूप माना जाता है। इसे ज्ञान और आत्मविश्वास के लिए विशेष माना जाता है। यह शुक्र ग्रह के लिए लाभदायक है।

सात मुखी रुद्राक्ष: इसे सप्तर्षियों का रूप माना जाता है। इससे आर्थिक समृद्धि आती है। इसका संबंध शनि से है।

अष्टमुखी रुद्राक्ष: इसे अष्टदेवी का एक रूप माना जाता है। इसे धारण करने से अष्टसिद्धि प्राप्त होती है। इससे राहु संबंधी परेशानी दूर होती है।

नौ मुखी रुद्राक्ष: इसे धारण करने से शक्ति, साहस और निडरता आती है। यह धन, सम्मान और प्रसिद्धि बढ़ाने में मदद करता है।

दस मुखी रुद्राक्ष: इसे धारण करने से व्यक्ति को दमा, गठिया, पेट और नेत्र रोगों से मुक्ति मिलती है। मुख्य रूप से नकारात्मक शक्तियों से बचाता है।

ग्यारह मुखी रुद्राक्ष: इसे पहनने से आत्मविश्वास और निर्णय लेने की क्षमता बढ़ती है। धार्मिक मान्यता यह है कि यह प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने में मदद करता है।

बारह मुखी रुद्राक्ष: इसे धारण करने से पेट, हृदय रोग, मस्तिष्क से संबंधित रोगों में लाभ होता है। इसके अलावा इसे सफलता प्राप्त करने के लिए भी पहना जाता है।

तेरह मुखी रुद्राक्ष: वैवाहिक जीवन को सफल बनाने के लिए इसे धारण किया जाता है। इसका संबंध शुक्र ग्रह से है।

चौदह मुखी रुद्राक्ष: इसे मानकर छठी इंद्री को जाग्रत करने और सही निर्णय लेने की क्षमता मिलती है।

admin

Related articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *