मर्दों के मुक़ाबले नए शब्द तेज़ी से याद कर सकती हैं महिलाएं, दिमाग़ का दोनों हिस्सा तेज़ी से काम करता है

शिकागो यूनिवर्सिटी की मनोवैज्ञानिक पाउलिन मकी का कहना है कि औरतों का ज़हन किसी भी शब्द की हिज्जे मर्दों के मुक़ाबले तेज़ी से याद रखता है. यही नहीं औरतें मर्दों के मुक़ाबले तेज़ी से बोलती हैं और उनके ज़हन में दर्ज लफ़्ज़ों की तादाद, मर्दों से ज़्यादा होती है.
माना जाता है कि हज़ारों वर्ष पहले औरतें अपने बच्चों को अच्छे-बुरे के बीच फ़र्क़ करने के उपदेश देती रही हैं, शायद इसलिए भी लड़कियों को बोलने की प्रैक्टिस अच्छी होती है. लेकिन क्या इस वजह के पीछे भी हार्मोन ज़िम्मेदार हैं, ये बड़ा सवाल है.
इसी सवाल का जवाब तलाशने के लिए मनोवैज्ञानिक पाउलिन मकी ने बाल्टीमोर के जेरोन्टॉलजी रिसर्च सेंटर के कुछ रिसर्चर के साथ मिलकर एक तजुर्बा किया. उन्होंने ये पता लगाने की कोशिश की कि औरतों में ओएस्ट्रोजन का बढ़ता-घटता स्तर हर महीने उन पर कैसा और कितना असर डालता है. इसके लिए उन्होंने दो स्तर पर तजुर्बा शुरू किया. हालांकि इस तजुर्बे का सैंपल साइज़ छोटा था. केवल 16 महिलाएं ही प्रतिभागी थीं. इन सभी का पीरियड शुरू होने से पहले और पीरियड ख़त्म होने के बाद का बर्ताव देखा गया.
रिसर्च के नतीजे हैरान करने वाले थे. सभी प्रतिभागी महिलाओं में जिस वक़्त फ़ीमेल हार्मोन का स्तर ज़्यादा था, तो वो मर्दों के मुक़ाबले चीज़ें याद रखने में कमज़ोर थीं. लेकिन जब फ़ीमेल हार्मोन का स्तर कम हुआ तो उनकी ये कमज़ोरी दूर हो गई. वो मर्दों के मुक़ाबले नए शब्द तेज़ी से याद रखने लगीं.
जिन शब्दों की अदायगी को लेकर संशय बना रहता है, उन्हें महिलाएं तेज़ी से और बिल्कुल सही समझ लेती हैं. बेहतर कम्युनिकेशन के लिए इसे ख़ूबी माना जाता है. अपनी रिसर्च के बुनियाद पर मनोवैज्ञानिक मकी मानती हैं कि औरतों में हर महीने होने वाले इस बदलाव की वजह ओएस्ट्रोजन हार्मोन है.
दिमाग़ का दोनों हिस्सा तेज़ी से काम करता है :फ़ीमेल हार्मोन दिमाग़ के दो हिस्सों पर अपना गहरा असर डालते हैं. पहला हिस्सा है हिप्पोकेम्पस जहां तमाम तरह की यादें जमा रहती हैं. हर महीने जब फ़ीमेल हार्मोन रिलीज़ होते हैं, तो दिमाग़ का ये हिस्सा बड़ा हो जाता है.
दूसरा असरअंदाज़ होने वाला हिस्सा है एमिग्डाला. दिमाग़ के इस हिस्से का संबंध जज़्बातों और फ़ैसला करने की ताक़त से होता है. हर महीने फ़ीमेल हार्मोन रिलीज़ होने से महिलाएं दिमाग़ के इस हिस्से का इस्तेमाल करते हुए किसी भी परिस्थिति को दूसरों के मुक़ाबले बेहतर तरीक़े से देखती हैं. हर महीने बढ़ने वाले ओएस्ट्रोजन हार्मोन की वजह से ही महिलाएं किसी भी तरह के डर को पहले से भांप लेती हैं.
मनोवैज्ञानिक मकी का मानना है कि औरतों की माहवारी का उनके दिमाग़ पर असर पड़ना इत्तिफ़ाक़िया है. वर्षों तक रिसर्चर यही मानते रहे कि जब महिलाओं में ओव्यूलेशन होता है तो उन्हें सेहतमंद मर्द के साथ सेक्स की ख़्वाहिश होती है. लेकिन हालिया रिसर्च इसे नकारती हैं.
मर्दों और औरतों के दिमाग़ के काम करने के तरीक़े में एक और बड़ा फ़र्क़ है. कोई भी काम करने में मर्दों के दिमाग़ का एक हिस्सा काम करता है. जबकि औरतों के दिमाग़ के दोनों हिस्से काम करते हैं. दिमाग़ के दाएं या बांए हिस्से के काम करने के तरीक़े का संबंध हाथ से है. मिसाल के लिए अगर कोई अपने दाएं हाथ का इस्तेमाल करता है तो भाषा का ज्ञान उसके दिमाग़ के बाएं हिस्से में होता है. लेकिन औरतों के दिमाग़ की संरचना इससे भी अलग होती है. अब ऐसा क्यों है, ये अभी तक रहस्य है.
2002 में की गई रिसर्च के मुताबिक़ जब औरतों में ओएस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रोन हार्मोन रिलीज़ होते हैं तभी उनके दिमाग़ के दोनों हिस्से ज़्यादा तेज़ी से काम करते हैं. इससे महिलाओं की सोचने की क्षमता में लचीलापन आता है. और दिमाग़ का दायां हिस्सा तेज़ गति से काम करने लगता है. देखा गया है कि जिन लोगों के दिमाग़ का दायां हिस्सा ज़्यादा काम करता है वो गणित के प्रश्न तेज़ी से हल कर लेते हैं. शरीर में हर महीने होने वाले बदलाव से दिमाग़ के काम करने के तरीक़े पर असर पड़ता है. महिलाओं में ये बदलाव पॉज़िटिव होते हैं.